Monday, August 12, 2013

आनन्दमार्ग जागृति में हुई तन-मन के गहरे रहस्यों की चर्चा

तीन घंटों तक चला बाबा नाम केवलम का अखंड कीर्तन
आनन्द मार्ग के लुधियाना स्थित आश्रम में बाबा के सामने भक्तों के समर्पण की एक झलक 
रहस्य बताते आचार्य गोविंदानन्द 
लुधियाना: 11 अगस्त 2013:  मन कमज़ोर भी इतना  कि जरा सा दुःख---या कोई छोटी सी मुसीबत और यह पलक झपकते ही विचलित हो जाता है। अहंकार का बंधन इतना कि अगर दो  दिन कुछ पूजा पाठ भी ज्यादा कर ले या फिर किसी को दान भी कर  दे तो  पहुँच जाता है अहंकार  के शिखरों पर जैसे यही हो सबका खुदा। इस पर काम के बंधन की जकड़ भी इतनी कि कोई सुन्दर चेहरा देखते ही सब कुछ  भूल जाता है। हाथी इतना समझदार है कि किसी भी पुल को देखते ही पल भर में समझ जाता है कि इस पुल में उसका भार वहन कर सकने की शक्ति  है या नहीं उअर अगर वह पुल कमजोर हो तो हाथी  को चाहे जितने अंकुश मार लो हाथी एक कदम भी उस पुल पर नहीं रखता लेकिन जब काम का वेग जागता है तो वही समझदार हाथी काम के वशीभूत हो कर शिकारी के बिछाए जाल में फंस जाता है और आखिरकार खुद ही जा गिरता है शिकारी के बनाये खड्डे में जहाँ उसे मिलती है एक दर्दनाक मौत। हम इंसानों की ज़िन्दगी भी इससे कुछ कम नहीं। हर रोज़ नई मुसीबत, हर रोज़ नया धोखा, हर रोज़ नया दुःख…. जिंदगी एक श्राप लगने लगती है---सज़ा लगने लगती है---ऐसा लगता है यहाँ कोई अपना नहीं----सब बेगाने हैं--सब लूटने वाले हैं----कदम कदम पे ठोकर---ऐसा लगता है जैसे हर राह अंगारों से भरी हो----पर फिर भी हमारे अंदर सवाल नहीं उठता कि आखिर ऐसा क्यूं? आखिर ऐसा कब तक? लुधियाना  के एक वरिष्ठ आनन्द मार्गी अशोक  चावला ने सर्कट हाऊस में हुए एक सम्मेलन में जनाब कृष्ण बिहारी नूर की शायरी के कुछ अंश सुनाए थे 14 जुलाई 2013 को  जिनमें आज की दुखद जिंदगी की पूरी झलक मिलती थी। श्री चावला ने बताया:
बाबा नाम केवलम
का कीर्तन करती एक बच्ची 
ज़िन्दगी से बड़ी सज़ा ही नहीं, 
और क्या जुर्म है पता ही नहीं|

इतने हिस्सों में बट गया हूँ मैं, 
मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं| 

ज़िन्दगी! मौत तेरी मंज़िल है 
दूसरा कोई रास्ता ही नहीं लेकिन 

लेकिन साथ ही सब को चौंका दिया यह पूछ कर कि कैसे बदला जा सकता है इस तरह की जिंदगी को? कैसे हो सकता है दुःख के सवेरे में से एक न्य सवेरा? इस तरह के  सवालों से पूरा हाल स्तम्ब्ध रह गया। बहुत से लोगों की आंखों में आंसू आ गए लेकिन जिंदगी का सच यही था।  तब श्री चावला ने बताया कि साधना से बदला जा सकता है जीवन।
भक्ति भाव में मस्त एक भक्त 
हजारों तरह के इन सब बन्धनों में जकड़ा हुआ मन शक्तिशाली भी इतना है कि अगर यह कहीं जाना चाहे तो बीमार तन भी किसी वफादार अनुचुर की भांति इसके साथ चल पड़ता है और अगर मन ही कहीं न जाना  चाहे तो वहां कभी सर में दर्द  हो जायेगा और कभी पीठ में दर्द तेज़ हो जाएगी---यानि कि मन  कोई न कोई नकली बीमारी भी गढ़ लेता है। अगर गुरुबानी में भी कहा गया है कि मन जीते जगजीत तो वह एक कालजयी सत्य है। सदियों पूर्व बता दी गई एक ऐसी हकीकत जिसका मर्म आज भी इंसान समझने को तैयार नहीं क्यूंकि उसका मन ही नहीं चाहता कि इस हकीकत को समझ कर--इसे जान कर उसका गुलाम अब उसका मालिक बन बैठे और उस पर शासन करे।  मन को साध कर आन्द्पूर्ण जीवन जीना ही साधना का लक्ष्य है।
तन और दिमाग को अपना शिकार बना लेने मन के इन रहस्यों और तन पर पड़ते इसके प्रभावों की चर्चा रविवार 11 अगस्त को लुधियाना की न्यू कुन्दनपूरी में स्थित आनन्द मार्ग आश्रम कम स्कूल के  साप्ताहिक जागृति आयोजन में की गई।  मार्ग के सदस्य  इस आयोजन को डी सी अर्थात धर्म चक्र भी कहते हैं। आश्रम के   इंचार्ज व स्कूल के प्रिंसिपल आचार्य गोविन्दानन्द ने मार्ग संस्थापक श्री श्री आनन्दमूर्ति जी की वाणी में से चुने गए अंशों के आधार पर मन के रहस्यों और संसार  के दुःख दर्द की एक एक परत उघेड़ते हुए बहुत सी पते की बातें बतायीं। उन्होंने साधना मार्ग पर चलने की आवश्यकता पर इस बार भी जोर दिया। उन्होंने जीवन में प्रेम की बात भी कही और आर्थिक तौर पर स्वतंत्र तरीकों की भी चर्चा की।  आचार्य गोविन्दंन्द जी ने भगवान शिव के इस धरती पर आने का इतिहास भी बताया और इस समाज की शिव की सौगातों से भी अवगत कराया। शिव का इतिहास यूं आम लोगों के सामने शायद पहली बार उच्चारित हो रहा था अन्यथा लोग तो भगवान् शिव को मिथिहास का ही एक पात्र मानते हैं एक कल्पना की कहाँ पर आनन्द मार्ग ने शिव ने का इतिहास भी खोज।
इस बार  तीन घंटे तक चला अखंड कीर्तन जिसमे मार्ग संस्थापक श्री श्री आनन्दमूर्ति जी की ओर से रचित पांच हजार से भी अधिक भजनों गीतों में से कुछ चुनी हुई रचनायें और  बाबा नाम केवलम  का मधुर गायन रहा। गौर तलब है कि बाबा नाम केवलम एक सिद्ध अष्टाक्षरि मन्त्र है जिसे मार्गी तकरीबन हर पल जपते हैं कभी मन में तो कभी ज़ुबान से या फिर होठों ही होठों से। ---रेक्टर कथूरिया 

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