Friday, May 19, 2017

""ठाकुर दलीप सिंह जी की कृपा से ठीक हो गया दिल का सुराख"

Fri, May 19, 2017 at 10:33 AM
जालंधर की प्रिंसिपल राजपाल कौर ने किया सभी सबूत पास होने का दावा 
बच्ची प्रेम कौर और उसके माता पिता करणबीर सिंह और राजिंदर कौर 
जालंधर: 19 मई 2017: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो):: 
आजकल नवजन्मे या छोटे बच्चों के दिल में सुराख होने की समस्या लगातार बढ़ रही है। ऐसा ही कुछ हुआ जम्मू के एक नामधारी परिवार के साथ। इस परिवार की बच्ची के दिल में भी सुराख था। जालंधर की प्रिंसिपल राजपाल कौर ने दावा किया है कि यह सुराख ठाकुर दलीप सिंह जी की कृप से बिना किसी इलाज के ठीक हो गया है। उनकी भेजी रिपोर्ट हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं। इस रिपोर्ट पर आपके विचारों की भी इंतज़ार रहेगी।-सम्पादक 
राजपाल कौर की रिपोर्ट:::
सतगुरु शब्द सत्य और गुरु के सुमेल से बना है। जो अज्ञान के अन्धेरे से ज्ञान के प्रकाश की तरफ ले चले तथा जो शिष्यों को सच की राह दिखाये उसे सतगुरु कहते हैं। गुरबाणी में भी लिखा है "सति पुरखु जिनि जानिआ सतगुरु तिस का नाउ" तथा "सतिगुरु सभना दा भला मनाइदा, तिस दा बुरा किउ होई"---क्योंकि ऐसे सतगुरु रूप संसार में सभी का कल्याण करने के लिए तथा सदमार्ग दिखाने के लिए ही आते हैं और जो सच्चे मन से सतगुरु जी के चरणों से जुड़ जाता है, वह भवसागर से पार हो जाता है।                       
सतगुरु की कृपा से असम्भव काम भी हो जाते हैं सम्भव 
इस बच्ची के दिल में था सुराख 
वर्तमान समय में नामधारी प्रमुख सतगुरु दलीप सिंह जी, जो विनम्रता तथा त्याग की मूरत हैं, अपने अलौकिक रूप से सबका मन मोह लेते हैं तथा शरण आये हुए पर अपनी कृपा - मेहर करते हैं। ऐसे अनेक अलौकिक कृपाओं को मैने देखा-सुना भी है तथा अनुभव भी किया है, उनमें से केवल एक का ही जिक्र करने जा रही हूँ, जो वाकई सभी को अचंभित कर देने वाली है कि ऐसे कलयुग के समय में भी सतगुरु की कृपा से तथा नाम जपने से असम्भव कार्य भी सम्भव हो जाते हैं। जम्मू के कृष्णानगर में रहने वाले कुलदीप सिंह जी ने मुझसे मुलाकात होने पर अपनी आपबीती वार्ता के बारे में बताया ,उनके साथ उनका परिवार; उनकी पत्नी सुखविंदर कौर, बेटा करणबीर सिंह, बहु रजिन्दर कौर तथा उनकी पोती प्रेम कौर भी थे। उन्होंने बताया की जब उनकी पोती प्रेम कौर जब केवल दो महीने की ही थी तो वह बहुत बीमार रहती थी, उन्होंने उसे जम्मू के डॉक्टर सी.डी.गुप्ता से चेक करवाया तो उन्होंने बताया की आपकी पोती के दिल में सुराख़ है और इसका अभी कोई इलाज नहीं हो सकता ,जब आपकी बच्ची पाँच साल की हो जाएगी तो एक नई तकनीक द्वारा, जिसमें पैर का मांस काट कर वहां लगा कर ऑपरेट किया जा सकता है या फिर धीरे-धीरे बड़े होने पर भर सकता है। सारे परिवार वाले बहुत निराश हुए और सोच में पड़ गए कि अब क्या किया जाये क्योंकि वो मासूम बच्ची दिल में सुराख़ होने की वजह से उसे बुखार भी अक्सर हो जाया करता था तथा उसके शरीर का उचित विकास भी नहीं हो रहा था।लेकिन निराशा और दुःख में तो केवल परमात्मा ही पुकार सुन सकते है उनकी भी पुकार सुनी गई और उन्हें अपने आराध्य गुरु, सतगुरु दलीप सिंह जी के दर्शन करने का मौका मिला, उन्होंने दर्शन करके सतगुरु जी के चरणों में विनती करके अपनी पोती की हालत के बारे में बताया। सतगुरु जी ने बड़े ध्यान से सारी बात सुनी, फिर बचन किया कि बच्ची की माता उसे अपनी गोद में लेकर पांच मिनट प्रतिदिन नाम सिमरन करे और ऐसा लगातार चालीस दिन तक करे, वे सत्यवचन कहकर, सतगुरु जी को नमस्कार कर घर आ गए और उनकी बहु ने बताया की ऐसा उसने लगातार करना शुरू कर दिया और चालीस दिन के बाद बच्ची की हालत में सुधार आना शुरू हो गया और उसका  ग्रोथ (विकास) होना भी शुरू हो गया, बुखार आना भी धीरे-धीरे बंद हो गया। उसके बाद वे थोड़ा निश्चिंत हो गए और दुबारा टैस्ट कराने भी नहीं गए क्योंकि उन्हें अपने गुरु पर पूरा भरोसा था फिर भी उन्होंने सभी की तसल्ली करवाने के लिए लगभग दो साल बाद बच्ची का टैस्ट करवाने के लिए उसी डॉक्टर के पास दुबारा  गए तथा जब डॉक्टर ने टैस्ट कर लिए तो वे हैरान हो गए कि बच्ची बिल्कुल ठीक थी ,उसके दिल में कोई सुराख़ नहीं था। डॉक्टर के पूछने पर कि आपने कोई इलाज करवाया था, बच्ची नॉर्मल कैसे हो गई तो कुलदीप सिंह जी ने उन्हें सारी बात बताई कि कैसे सतगुरु जी की आज्ञा से, नाम जपने से उनकी बच्ची ठीक हो गई। गुरबाणी में भी लिखा है" सरब रोग का अउखदु नामु" पर जो इसे श्रद्धा से मानता है वही इसका लाभ प्राप्त कर सकता है, सतगुरु जी के बचनों को जीवन में श्रद्धापूर्वक अपनाकर ही खुशियाँ प्राप्त की जा सकती है। डॉक्टर ने उन्हें रिपोर्ट भी दिखाई और वे ख़ुशी-ख़ुशी घर वापिस आ गए। उन्होंने मुझे भी दोनों रिपोर्टे दिखाई पहली वाली और बाद वाली भी। मैं भी उनके बचन सुनकर धन्य हो गई। मेरे मुँह से केवल यही शब्द निकले ;धन्य सतगुरु जी और धन्य हैं उनके सिक्ख! जो श्रद्धा से उनके बताये मार्ग पर चलकर उनके कृपा-पात्र बन जाते हैं। जम्मू में रहने वाले कुलदीप सिंह जी ने मुझसे मुलाकात होने पर अपनी आपबीती वार्ता के बारे में बताया, उनके साथ उनका परिवार; उनकी पत्नी सुखविंदर कौर, बेटा करणबीर सिंह, बहु रजिन्दर कौर तथा उनकी पोती प्रेम कौर भी थे। उन्होंने बताया की जब उनकी पोती प्रेम कौर जब केवल दो महीने की ही थी तो वह बहुत बीमार रहती थी, उन्होंने उसे जम्मू के डॉक्टर सी.डी.गुप्ता से चेक करवाया तो उन्होंने बताया की आपकी पोती के दिल में सुराख़ है और इसका अभी कोई इलाज नहीं हो सकता, जब आपकी बच्ची पाँच साल की हो जाएगी तो एक नई तकनीक द्वारा, जिसमें पैर का मांस काट कर वहां लगा कर ऑपरेट किया जा सकता है या फिर धीरे-धीरे बड़े होने पर भर सकता है। सारे परिवार वाले बहुत निराश हुए और सोच में पड़ गए कि अब क्या किया जाये क्योंकि वो मासूम बच्ची दिल में सुराख़ होने की वजह से उसे बुखार भी अक्सर हो जाया करता था तथा उसके शरीर का उचित विकास भी नहीं हो रहा था।लेकिन निराशा और दुःख में तो केवल परमात्मा ही पुकार सुन सकते है उनकी भी पुकार सुनी गई और उन्हें अपने आराध्य गुरु, सतगुरु दलीप सिंह जी के दर्शन करने का मौका मिला, उन्होंने दर्शन करके सतगुरु जी के चरणों में विनती करके अपनी पोती की हालत के बारे में बताया। सतगुरु जी ने बड़े ध्यान से सारी बात सुनी, फिर बचन किया कि बच्ची की माता उसे अपनी गोद में लेकर पांच मिनट प्रतिदिन नाम सिमरन करे और ऐसा लगातार चालीस दिन तक करे, वे सत्यवचन कहकर, सतगुरु जी को नमस्कार कर घर आ गए और उनकी बहु ने बताया की ऐसा उसने लगातार करना शुरू कर दिया और चालीस दिन के बाद बच्ची की हालत में सुधार आना शुरू हो गया और उसका  ग्रोथ (विकास ) होना भी शुरू हो गया ,बुखार आना भी धीरे-धीरे बंद हो गया। उसके बाद वे थोड़ा निश्चिंत हो गए और दुबारा टैस्ट कराने भी नहीं गए क्योंकि उन्हें अपने गुरु पर पूरा भरोसा था फिर भी उन्होंने सभी की तसल्ली करवाने के लिए लगभग दो साल बाद बच्ची का टैस्ट करवाने के लिए उसी डॉक्टर के पास दुबारा  गए तथा जब डॉक्टर ने टैस्ट कर लिए तो वे हैरान हो गए कि बच्ची बिल्कुल ठीक थी, उसके दिल में कोई सुराख़ नहीं था। डॉक्टर के पूछने पर कि आपने कोई इलाज करवाया था , बच्ची नॉर्मल कैसे हो गई तो कुलदीप सिंह जी ने उन्हें सारी बात बताई कि कैसे सतगुरु जी की आज्ञा से, नाम जपने से उनकी बच्ची ठीक हो गई। गुरबाणी में भी लिखा है"सरब रोग का अउखदु नामु " पर जो इसे श्रद्धा से मानता है वही इसका लाभ प्राप्त कर सकता है, सतगुरु जी के बचनों को जीवन में श्रद्धापूर्वक अपनाकर ही खुशियाँ प्राप्त की जा सकती है। डॉक्टर ने उन्हें रिपोर्ट भी दिखाई और वे ख़ुशी-ख़ुशी घर वापिस आ गए। उन्होंने मुझे भी दोनों रिपोर्टे दिखाई पहली वाली और बाद वाली भी। मैं भी उनके बचन सुनकर धन्य हो गई। मेरे मुँह से केवल यही शब्द निकले ;धन्य सतगुरु जी और धन्य हैं उनके सिक्ख! जो श्रद्धा से उनके बताये मार्ग पर चलकर उनके कृपा-पात्र बन जाते हैं। 

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