Friday, July 29, 2016

जनविरोधी बैंकिंग सुधारों का नाश हो--हड़ताली बैंक मुलाज़िमों का श्राप

भारी बारिश भी नहीं रोक पायी बैंक मुलाज़िमों का जोश 
लुधियाना; 29 जुलाई 2016:(पंजाब स्क्रीन ब्यूरो);
यूनाईटेड फारम आफ बैंक यूनियन्स के आहवान पर, एक मिलीयन बैंक कर्मचारी एवं अधिकारी आज जनविरोधी बैंकिंग सुधारों के विरुद्ध एक दिवसीय अखिल भारतीय हड़्ताल पर हैं । निर्णय के अनुसार, यूनाईटेड फारम आफ बैंक यूनियन्स (लुधियाना इकाई) ने केनरा बैक, भारत नगर चौंक, लुधियाना के सामने जोरदार प्रदर्शन किया । कामरेड नरेश गौड़, संचालक, यूनाईटेड फारम आफ बैंक यूनियन्स, कामरेड पवन ठाकुर, प्रधान, पंजाब बैंक इम्पलाईज़ फैडेरेशन (लुधियाना इकाई), कामरेड संजय शर्मा, उप प्रधान, आल इण्डिया बैंक आफिसर्स कन्फैडेरेशन, लुधियाना अंचल, कामरेड जे पी कालड़ा, प्रधान, स्टेट बैंक आफ इण्डिया आफिसर्स एसोसिएशन, कामरेड इकवाल सिंह, सहायक महा सचिव, स्टेट बैंक आफ इण्डिया स्टाफ एसोसिएशन, कामरेड डी पी मौड़, महा सचिव, ज्वाईंट काउंसिल आफ ट्रेड यूनियन्स ने बैंक कर्मचारियों एवं अधिकारियों को संबोधित किया । इस अवसर पर कामरेड अशोक मल्हन, कामरेड राजेश वर्मा, उप प्रधान, पंजाब बैंक इम्पलाईज़ फैडेरेशन (लुधियाना इकाई) एवं कामरेड प्रवीण मोदगिल, संचालक, वूमैन सैल, पंजाब बैंक इम्पलाईज़ फैडेरेशन भी उपस्थित रहे ।     

बैंक कर्मचारियों को संबोधित करते हुए कामरेड नरेश गौड़ ने कहा कि हम सभी जानते हैं कि सरकार  बैंकिंग सुधार उपायों को एक प्रकार से अथवा दूसरे रुप में आगे बढाना चाहती है इसके पीछे मौलिक विचार सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकिंग को कमजो़र करना तथा छिन्न-भिन्न कर देना है और निजी क्षेत्र की बैंकिंग को बढ़ावा देना है हम निरन्तर ऐसी योजनाओं से लड़्ते रहे हैं हमने संघन अभियान, आन्दोलन, संघर्ष और हड़ताली कार्यवाहियाँ इस सभी उपायों के विरुद्ध खड़ी की है हम वास्तविक रुप से गर्व अनुभव कर सकते हैं कि इस सभी लगातार प्रयासों के कारण जिस गति से इन सुधार कार्यक्रमों का प्रस्ताव लागू करने के लिए किया गया था उस पैमाने पर नहीं लागू हो सके किन्तु हम जानते हैं कि सरकार अपने पंजों के बल अपनी कार्यसूची को किसी भी प्रकार लागू करने के लिए खड़ी है
सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय के लिए भी घोषणा की है पहले ही आरबीआई ने काँर्पोरेट एवं औद्दोगिक घरानों को लाईसैंस देने की योजना की घोषणा की है आरबीआई ने इससे आगे लघु निजी बैंकों और भुगतान बैंकों की स्थापना के लिए भी दिशानिर्देश जारी कर दिये हैं अत: यह हमारे बैंकिंग क्षेत्र को अधिक से अधिक निजी हाथों में देने का एक ठोस प्रयास है  बैंकिंग उद्दोग में हमें पहले ही पता है कि सरकार अपने कथित सुधारों के निरंतर प्रयास आगे बढ़ा रही है, जिसकी कार्य सूची में प्राथमिकता के आधार पर बैंकों का निजीकरण सुदृढ़ीकरण और विलय आदि है । अधिक से अधिक निजी पूंजी और सीधे विदेशी निवेश को प्रोत्साहित किया  जा रहा है । क्षेत्रिय ग्रामीण बैंकों के निजीकरण का प्रयस चल रहा है और इस संदर्भ में हमारी यूनियनों के विरोध के बावजूद संसद में इस संदर्भ में विधेयक पारित कर दिया गया है । प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों में (पीएसी) समेटे जाने के खतरे में है । शहरी साहकारी बैंक लाईसेंस समाप्त किये जाने के खतरे   में हैं। निजी क्षेत्र के कार्यकारियों को सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों में थोपा जा रहा है । बिना किसी ढांचागत सुविधा और कर्मचारियों के बढाए सरकारी नीतियों को सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों पर थोपा जा रहा है । बैंक अधिकारियों को काम के नियमित घंटों से वंचित किया जा रहा है । स्थाई और नियमित कार्यों को ठेका आधार पर आउट्सोर्स किया जा रहा है और ठेका कर्मचारियों का शोषण किया जा रहा है । सरकार अपनी कार्य सूची पर आगे बढ़ रही है और श्रम संगठनों से बिना समुचित विचार विमर्श किये बिना श्रम कानूनों को संशोधित करेगी ।      

बैंकिंग क्षेत्र के सुधारों के नाम पर, बैंकों के निजीकरण के प्रयास किये जा रहे हैं जिससे कि उन्हें निजी कार्पोरेटों के हाथों सौंपा जा सके जिससे वह जनता की बहुमूल्य बचत को और लूट सकें । बैंकों के एकीकरण का प्रयास, उन्हें बड़ा बनाने और उन्हें वैश्वीकृत करने का है जबकि बैंकों का विस्तार और जन सामान्य तक उनकी पहुंच बढाना अधिक आवशयक था ।  पहले ही हमारे बैंक खराब ऋणों की खतरनाक वृद्धि के कारण लहूलुहान हैं, कार्पोरेटों तथा बड़े व्यवसायियों के जानबूझकर चूक करने के कारण ऐसा है । अपराधियों के विरुद्ध कठोर कदम उठाने और ऋणों की वसूली के स्थान पर, प्रयास किये जा रहे हैं कि उन्हीं चूककर्ताओं को बैंक सौंप दिये जायें । यह बहुत ही स्पष्ट है कि उनके बैंकिंग सुधारों की सभी बातें और विलय तथा एकीकरण के प्रस्ताव केवल एक हथकण्डा और खेल का तरीका है जिससे कि लोगों का ध्यान इस बड़े पैमाने पर बैंकों के खराब ऋणों से हटाया जा सके ।  हमारे देश की आवश्यकता एक सुदृढ़ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक हैं न कि अनावशयक रुप से बड़े बैंक जिनका वैशिवक आकार हो । हमारे देश की आवश्यकता बैंकिंग के विस्तार की है न कि बैंकों का एकीकरण और जनता के लिए बैंकिंग सेवाओं का संकोचन की । खराब ऋणों की चिन्ताजनक वृद्धि जो कि लगभग 13 लाख करोड़ तक पहुंच गये हैं पर ध्यान केन्द्रित किया जाना चाहिए । कठोर कदम उठाकर उस धन को वापस लेने के प्रयास किये जाने चाहिए न कि हड़बड़ी में प्रावधानों, बट्टे खाते डालने, सीडीआर तथा एसडीआर के माध्यम से ढकने के ।

यदि ऋण खराब रुप से मंजूर किये गये हैं, सम्बंधित कार्यकारियों पर कार्यवाही की जानी चाहिए । यदि कर्जदारों ने बैंक को छला है, तो चूककर्ता के विरुद्ध फौज़दारी मामला लागू करना चाहिए ।  खराब ऋणों के लिए प्रावधान करना, तुलन पत्र को साफ सुथरा बनाना और बैंकों को फिर घाटा देने लायक बना देना समस्या का समाधान नहीं है । यह स्पष्ट है, ये सभी बड़े खराब ऋणों के लिए जवाबदेही से बचने केलिए केवल बंटाने की रणनीति है । किंगफिशर माल्या हिम्शिला का केवल शिखर है । बैंकों में खराब ऋणों के सागर में बहुत अधिक शार्क हैं । क्यों चूककर्ताओं की सूची उनके द्वारा प्रकाशित नहीं की जा रही है? क्यों आपराधिक कार्यवाही जानबूझकर कार्पोरेट चूककर्ताओं पर नहीं की जा रही है? क्यों उन सभी के साथ मखमली व्यवहार किया जा रहा है? क्यों इन चूककर्ता कम्पनियों में इक्विटी निवेश के रुप में खराब ऋणों को बदलने के प्रयास हैं । क्या यह सरकार की कार्पोरेट शासन प्रणाली तथा सुशासन प्रणाली नीति है? आडीबीआई बैंक में, 10 वर्ष पूर्व, लगभग रुपए 9000  करोड़् के खराब ॠण उनकी किताबों से बाहर कर दिये गये । अब पुन: रुपए 19000 करोड़ के खराब ऋण हैं । इन खराब ऋणों की वसूली की कार्यवाही करने के स्थान पर, सरकार बैंक का निजीकरण कर उन्हीं निजी क्षेत्र के हाथों में बेच देना चाहती है जो कि आईडीबीआई बैंक में इन सारी तादाद चूक के लिए जिम्मेदार हैं। 

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