Thursday, July 09, 2015

पूँजीवाद की मुसीबतों के चक्तव्यूह में घिरी पारुल कालिया

मीडिया के सामने रो पड़ी पारुल अपनी दास्तान सुनाते सुनाते 
लुधियाना: छोटी सी उम्र लेकिन दुःख शायद उसकी तक़दीर बन चूका है।  राहत मिलने की उम्मीद में जहाँ भी जाती है वहीँ उस पर शोषण की नज़र पड़नी शुरू हो जाती है। छोटी सी उम्र में ही बड़ी बड़ी मुसीबतों को गले लगा चुकी पारुल कालिया दुगरी थाने के सामने मीडिया को रो रो कर अपनी दास्तान सुना रही थी। किसी न किसी तरह अपने एकलौते बेटे के पालन पोषण में लगी पारुल के लिए अब वही है जीने की उम्मीद। अपने बेटे को पाल कर बड़ा करना ही शायद उसका अब एकमात्र मकसद है। उसकी तरफ जो भी नज़र उठती है गलत इरादे से उठती लगती है। उसके खिलाफ खड़े लोगों में जो चेहरे हैं उनके नाम सुनकर शायद आप भी चौंक जाएं। इन नामों का ज़िक्र बाद में पहले बात करते हैं पारुल के लिए मुसीबत बने हालात की। आम तौर पर घरों में समस्या होती है गरीबी के कारण, लालच के कारण, स्वार्थ के कारण पर यहाँ मामला ही कुछ और है। यह मुद्दा पैदा हुआ है पूँजीवाद के साथ पैदा होती शर्मनाक समस्यायों के साथ। जिस समाज में पैसा ही सब कुछ बन जाये तो भगवान बना पैसा समाज को किस गिरावट तक ले जाता है शायद इसका अनुमान भी न लगाया जा सके। पारुल भी पूंजीवाद के साथ पैदा होती मुसीबतों का ही शिकार हो रही है। पारुल को अपने विदेशी रिश्तेदारों से आता पैसा ही उसके लिए समस्याएं लेकर आया। पारुल को देख कर याद आती हैं जनाब साहिर लुधियानवी साहिब के एक लम्बे गीत की पंक्तियाँ
कहते हैं जिसे पैसा बच्चो यह चीज़ बड़ी मामूली है 
लेकिन इस पैसे के पीछे सब दुनिया रस्ता भूली है। 
साहिर साहिब ने यह हकीकत दश्कों पहले बयान की थी लेकिन इसने बार बार खुद को साबित किया। पैसे ने दुनिया भर को भटका कर अपने रास्तों से हटा दिया। सभी रिश्ते-नाते, संबंधी एक दुसरे के साथ प्यार या संबन्ध  से नहीं केवल पैसे के नफे नुक्सान से देखने लगे। किसी से बुखार का हाल पूछो तो जवाब मिलता है अभी तो बस चवन्नी आराम आया है।  बारह आना अभी भी तबीयत खराब है। किसी युवा से पूछो तो भाई क्या बनोगे तो जवाब मिलता है--जिसमें चार पैसे बनें। किसी लड़की से पूछ लो कि किस से शादी करोगी तो अक्सर कई लड़कियां खुल कर कहती हैं जो खूब ऐश कराये जिसके पास ढेर सारा पैसा हो। स्कूल की पढ़ाई पूरी करनी हो या कालेज की शिक्षा--पैसा अपना जलवा दिखा रहा है। शिक्षा और काम के बावजूद नौकरी चाहिए तो वहां भी नौकरी दिलवाने का पैसा खर्च करो वो भी एक नंबर में। इलाज कराना हो तो भी पैसा।  मरीज़ अस्पताल में मर जाये तो शव लेने के लिए भी पैसा। शव घर आ जाये तो श्मशान घात वाले भी पैसा मांगते हैं। पैसे की सोच से दूषित हो चुके इस शर्मनाक समाज में आखिर पारुल भी क्या करे?
तलाक के बाद जब पारुल अपने बच्चे को लेकर कुछ चिंतित हुई तो उसकी मौसी ने उसके लिए कुछ पैसे अपनी बहन के पास भेजे। मकसद था परुल के सर की छत बन सके। मौसी चाहती थी कि पारुल उन पैसों से अपना घर खरीद ले। इन पैसों से एक प्लाट भी लिया गया तो आखिर रजिस्ट्री भी होनी थी और पैसे की अदायगी भी। इसी पड़ाव पर आकर सारे मामले ने एक नया मोड़ लिया और पारुल पहुँच गयी दुगरी थाने में अपनी शिकायत लेकर।  
थाने के बाहर उसने मीडिया को बताया कि जब उसने अपने पैसे या रजिस्ट्री वापिस मांगी तो सबंधित डीलर ने उस पर हमला कर दिया। पारुल का आरोप था कि पुलिस ने उसकी सुनवाई नहीं की।  मीडिया ने जब पुलिस से सम्पर्क किया तो पुलिस ने मीडिया के सामने उसकी पूरी सुनवाई की और पूरी सुरक्षा का आश्वासन भी दिया। 
किसी निजी कम्पनी में काम करके अपना गुज़ारा चला रही पारुल परेशान है उन धमकियों से जो उसे राह आते जाते दी जातीं हैं। 
कौन हैं पारुल को धमकियां देने वाले?
कौन है उसके विरोधी? 
कौन है उसका हमदर्द?
क्या बनेगा पारुल कालिया का?
इन सभी सवालों के जवाब आपको मिल सकें हमारी अगली पोस्ट में जिसमें कुरेदा जायेगा पारुल कालिया के लिए खतरा बने लोगों का हर पहलू।
आज पारुल की कहानी देख सुन कर याद आते हैं  ओशो जिन्होंने अमेरिका में जा कर बहुत सफलता से अपना कम्यून चला कर दिखाया था। वहां कोई करंसी नहीं थी लेकिन हर किसी को हर सुविधा उपलब्ध थी। इसकी सफलता देख कर ही पूंजीवादी समाज हिल गया और ओशो की जान का दुश्मन बन बैठा।
पूंजीवादी समाज में पैसे के असंतुलित बटवारे ने ही जन्म दिया जुर्मों को और जुर्मों से भरा समाज बन गया जीने के लिए नरक से भी बदतर। आज लावारिस फिल्म का गीत भी याद आ रहा है-- जिसकी एक पंक्ति थी---यही पैसा तो अपनों से दूर करे है--- . आज पारुल जिस हालात में पहुँच चुकी है उसके लिए पूंजीवादी सिस्टम पूरी तरह ज़िम्मेदार है। आईये इस सितम को बदल कर पारुल जैसी अनगिनत लड़कियों को बचाने का यज्ञ शुरू करें। 

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