Friday, January 17, 2014

INDIA: प्रयोगों से संभव हुआ खाद्य एवं पोषण सुरक्षा

 Fri, Jan 17, 2014 at 1:47 PM
An Article by the Asian Human Rights Commission                                  गोविंद यादव
दमोह जिले के हरदुआगांव के धम्मू प्रजापतिअपनी गेंहू की फसल के उत्पादन से बहुत खुश हैं। वे कहते हैं कि ऐसा पहली बार हुआ है की बीज कम लगा और खाद के लिए कर्ज भी नहीं लेना पड़ा फिर भी फसल पहले से डेढ़ गुना तक ज्यादा हुई है। इस बार उनके परिवार के लिए वर्ष भर का अनाज पैदा हुआ है। धम्मू प्रजापति और उनके जैसे हजारों किसानों के लिए यह खेती के लिए सघनीकरण विधिके कारण संभव हुआ है।

दमोह जिले के विकासखण्ड तेन्दूखेड़ा में जैविक पद्धति से किये जा रहे गेहूं सघनीकरण विधि के नये प्रयोगों ने यह सिद्ध किया कि मंहगी रसायनिक खाद की जगह देशी जैविक खाद के उपयोग से खेती की लागत कम और भूमि की उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। क्षेत्र के छोटे और सीमांत किसानों के लिए भी खेती अब लाभ का धंधा हो गई है। इस पद्धति को अपनाकर सैकड़ों लघु और सीमांत किसानों ने अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ा ली है। जहाँ परंपरागत विधि से गेहूं उत्पादन28 से 34 कुंटल प्रति हेक्टेयर तक हुआ करता था वही गेंहू सघनीकरण विधि से यह उत्पादन बढ़कर 50 से 65 कुंटल प्रति हेक्टेयर तक पहुंचा है। इस प्रकार डेढ़ से दो गुना तक अधिक उत्पादन होने से परिवारों की खाद्य सुरक्षा पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
ग्राम बेलढ़ाना निवासी दीपचन्द्र केवट बताते हैं कि इस पद्धति से गेहूं उगाने में एक दाने से पचास से साठ शाखायें निकली और इनकी बालियों की लंबाई पारंपरिक गेंहू की अपेक्षा डेढ़ से दो गुनी लंबी थी, दाने भी मोटे और चमकदार हैं प्रत्येक बाली में 70 से 90 दाने तक प्राप्त हुए हैं। पौधे की लंबाई भी अधिक है, जबकि परम्परागत गेहूं में 35 से 38 दाने ही बालियों में गिने जा सके इससे उत्पादन गेहूं और भूसे का दुगना हुआ है।
ग्राम खगोरिया के मूलसिंह का कहना कि अगले साल अपने पूरे खेत में इसी तरीके से गेंहू की फसल उगाएंगे। और अपने साथियों को भी इसी तरीके से फसल उगाने के लिए प्रेरित करेंगे ताकि रोजी रोटी की जुगाड़ में हमारे भाइयों को दूसरे शहर में मजदूरी करने न जाना पड़े। ग्राम पटी के गौतम सिंह ने अपने खेतों में गेहूं की पैदावार में अन्तर निकालते हुये बताया कि इस पद्धति में लागत पम्परागत विधि से बहुत कम है। इस तरह के प्रयास ग्रामीण विकास समिति द्वारा दमोह जिले के तेन्दखेड़ा ब्लाक के ग्राम बेलढ़ाना,हरदुआ,पांजी,पिड़रई,खेड़ा,खगोरिया,बगदरी,पटी जैसे अनेक गांव में जैविक तरीके से कम लागत में गेहूं,धान,मक्का, चना और सब्जियों के उत्पादन सफल तरीके से किये गये है।
इन ग्रामों में परिवारों के पास पर्याप्त मात्रा में अपनी कम उपजाऊ जमीनों में दो गुना से भी अधिक उत्पादन मिल रहे है ,अब वह परिवार जो अपने छोटे छोटे खेतों से साल भर के लिये अनाज पैदा नही कर पाते थे और अपनी जरूरतों को बाजार और साहूकारों से पूरा करते थे वे परिवार अब अनाज उत्पादन में पूरी तरह से आत्म निर्भर हो गये है और उन्हीं जमीनों से दस बीस हजार का अनाज बेचकर परिवार की अन्य जरूरते भी पूरी कर रहे है।
दरअसल 1980 के दशक में फ्रांसीसी पादरी हेनरी डे लाउलानी ने मेडागास्कर में धान के उपर महत्वपूर्ण प्रयोग किया,जिसको धान सघनीकरण पद्धति (श्रीविधि) नाम दिया गया। पिछले एक दशक में भारत के कई राज्यों में किसानों ने इस विधि को अपना कर ज्यादा पैदावार प्राप्त की है।इस विधि में किसान कम बीज व न्यूनतम उपलब्ध पानी से भी खेती कर सकता है। एक या दो बीजों को पंक्ति से पंक्ति व बीज से बीज की निश्चित दूरी पर बुवाई की जाती है। इसमें रासायनिक खादकीट एवं खरपतवार नाशकों की जगह जैविक खाद और जैविक तरीके से कीट एवं खरपतवार नियंत्रण किया जाता है। इससे फसल की गुणवत्ता में सुधार होता है। जैविक तरीका अपनाने से भूमि में सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि होती है तथा भूमि की उर्वरा शक्ति में बढ़ोत्तरी होती है। इस विधि में खेत को समतल करने,निश्चित दूरी व उचित गहराई पर बीजों को बोने,जैविक खाद के प्रयोग और समय समय पर गुड़ाई करने व उचित नमी रखने से मिट्टी में वायु (आॅक्सीजन) का संचार होता है। इससे पौधों की जड़े गहरी व स्वस्थ रहती है और पौधों का विकास अच्छा होता है जिससे फसल सघनीकरण विधि अपनाने से उत्पादन अधिक होता है।
इस विधि के द्वारा असिंचित एवं कम पानी वाले क्षेत्रों में भी सफलतापूर्वक फसल सघनीकरण द्वारा खेती की जा सकती है। प्रचलित विधि की तुलना में फसल सघनीकरण विधि से गेहूँ,धान,मक्का के उत्पादन में डेढ़ से दो गुना तक की वृद्धि होती है। पौधों में अधिक कल्ले व उनकी अधिक मोटाई व लम्बाई के कारण भूसा (सूखा चारा) का उत्पादन भी 25-30 फीसदी अधिक होता है। इस नई पद्धति में फसल सघनीकरण के एक पौधे से कम से कम 15 से 20 बालियां आती है। फसल सघनीकरण पद्धति के सभी सिद्धांतों एवं चरणों का समुचित रूप से पालन करने पर कई पौधों में 35 व उससे भी अधिक बालियां निकल सकती हैं। पौधों में अधिक कल्ले व लम्बी बालियां एवं दानों की अधिक संख्या तथा बड़ा आकार होने के कारण उत्पादन अधिक होता है। उपरोक्त विशेषताओं के कारण फसल सघनीकरण पद्धति द्वारा खेती करने से उपज बढ़ती है,भूमि की उर्वरता व संरचना सुधरती है तथा किसानों का आर्थिक व सामाजिक स्तर भी सुधरता है।
कुपोषण दूर करने के तरीकों में सबसे पहले भरपेट और पर्याप्त भोजन की जरूरत होती है इसके बाद पोषक तत्वों की भरपाई करना जरूरी है जिससे बहुत हद तक स्थानीय स्तर पर खेती से पूरा किया जा सकता है। अगले क्रम में स्वच्छता पर काम करने की जरूरत है जिससे इन्फेक्शन और बीमारियों को निचले पायदान पर भेजा जा सकता है। स्वच्छ पेयजल की जरूरत होती है जिससे डायरिया से होने वाली बीमारियों और मौतों को कम किया जा सकता है इसके लिये पी.एच.ई. विभाग जिम्मेदार है। निमोनिया (बड़ी सर्दी) से होने वाली बीमारियों और मौतों को स्थानीय स्तर के पारंपरिक इलाज और स्वास्थ्य विभाग के अमले की सक्रियता से कम किया जा सकता है। इसके बाद टीकाकरण जैसे काम प्रतिब्धता के साथ किया जाये तो स्थिति में अमूलचूल परिवर्तन देखने को मिल सकते है।
इस तरह हम देख सकते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि की लागत कम करके उत्पादन बढ़ाने की और भोजन में पोषक तत्वों की भरपाई करने की तरफ यदि ध्यान दिया जाये तो स्थानीय स्तर पर टिकाऊ खाद्य सुरक्षा और पोषण प्रबंधन सुनिष्चत हो सकता है।
# # #
About the AuthorGovind Yadav is Associated with Gramin Vikas Samiti Damoh Madhya Pradesh. He can be contacted atgvsmpindia@gmail.com
About AHRC: The Asian Human Rights Commission is a regional non-governmental organisation that monitors human rights in Asia, documents violations and advocates for justice and institutional reform to ensure the protection and promotion of these rights. The Hong Kong-based group was founded in 1984.

No comments: